पूर्वी दिल्ली मे सफाई करंचारियों की एक बार फिर से हड़ताल. सड़कों से कचरा उठना बंद. जगह जगह कचरे के ढेर लगने शुरू. ढलाओं मे भी कचरा भरना शुरू. फिर से वो ही गंद और बदबू का आलम.
आख़िर चल क्या रहा है? कौन ज़िम्मेदार है इन हड़तालों के लिए, जो कि पिछले कुछ सालों से लगातार होने लगी हैं? क्यों सरकारी एजेन्सीस इन हड़तालों को रोकने मे नाकाम हो रही हैं? क्यों सफाई करंचारियों को उनके पैसे नही मिलते?
क्यों लोगों की तकलीफ़ों का हल नही निकलता? क्यों लोगों को इस कचरा राजनीति के चलते, खुद कचरा होना पड़ता है? क्यों ये सब कुछ सिर्फ़ पूर्वी दिल्ली मे ही होता है? क्यों हमे इस सड़े बदबूदार कचरे के साथ जीने को मजबूर होना पड़ता है?
किधर हैं हमारे वो नेता, जो चुनावों से पहले तो बड़े बड़े वादे करते हैं, बड़े बड़े दावे करते हैं, और जीतने के बाद, सिर्फ़ दोषारोपण करते हैं? कब तक उनकी नाकामियों की सज़ा लोगों को भुगतनी पड़ेगी?
बस अब और नहीं, बहुत कचरा हो गया. अब इस कचरे को सहना मुश्किल है. अब इस कचरे मे जीना मुश्किल है. अब इस कचरे मे साँस लेना मुश्किल है. अब उन नेताओं को सहना मुश्किल है जो सिर्फ़ कचरा करते हैं.
दोस्तो आवाज़ उठाओ. अपने चुने हुए नेताओं को सोती नींद से जगाओ. उनको बताओ कि हम अभी जिंदा हैं. और जिंदा इंसान कुछ भी बर्दाश्त कर सकता है, लेकिन धोका नहीं, अन्याय नहीं. बस अब और नहीं, पूर्वी दिल्ली का बहुत कचरा हो गया.
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